छत्तीसगढ़ में शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण से दूरस्थ अंचल को मिलेगी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

     रायपुर, 05 जून 2025:  छत्तीसगढ़ में सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अंतर्गत शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण की एक व्यापक प्रक्रिया शुरू की गई है जिससे दूरस्थ, आदिवासी व ग्रामीण क्षेत्रों में लंबे समय से शिक्षकों की कमी से जूझ रहे स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता और शिक्षा की गुणवत्ता का नया संतुलन कायम हो सकता है। 

     छत्तीसगढ़ में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और प्रत्येक विद्यार्थी को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण की एक व्यापक और प्रभावशाली प्रक्रिया शुरू की है।

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    राज्य सरकार ने उम्मीद जताई है कि इस पहल से दूरस्थ, आदिवासी व ग्रामीण क्षेत्रों में लंबे समय से शिक्षकों की कमी से जूझ रहे स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता और शिक्षा की गुणवत्ता का नया संतुलन कायम होगा। 

     मुख्यमंत्री विष्णु देव साय का कहना है कि युक्तियुक्तकरण का उद्देश्य शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है।

    उन्होंने कहा कि इसको ध्यान में रखकर शालाओं और शिक्षकों का तर्कसंगत समायोजन किया जा रहा है। जहां जरूरत ज्यादा है, वहां शिक्षकों का बेहतर ढंग से उपयोग सुनिश्चित हो। उन स्कूलों को, जो कम छात्रों के कारण समुचित शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं, उन्हें नजदीक के अच्छे स्कूलों के साथ समायोजित किया जा रहा है, ताकि बच्चों को बेहतर माहौल, संसाधन और पढ़ाई का समान अवसर मिल सके।

     मुख्यमंत्री ने कहा युक्तियुक्तकरण से शिक्षा का स्तर सुधरेगा और हर बच्चे को अच्छी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी। यह पहल राज्य की शिक्षा व्यवस्था को ज्यादा सशक्त और संतुलित बनाएगी। 

     रायपुर के धरसीवां विकासखंड में कई स्कूलों में छात्रों की संख्या के मान से शिक्षक अधिक पदस्थ हैं। नयापारा कन्या स्कूल में 33 छात्राओं पर 7 शिक्षक तथा रविग्राम में 82 विद्यार्थियों पर 8 शिक्षक पदस्थ हैं। युक्तियुक्तकरण के माध्यम से इन शिक्षकों को आवश्यकता वाली शालाओं में पदस्थ किया जाएगा, जिससे शिक्षक और छात्र के अनुपात का संतुलन कायम होने के साथ ही दूरस्थ इलाकों के बच्चों को भी अध्यापन के लिए शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। 

     कोरबा जिले के सभी प्राथमिक और मिडिल स्कूलों में अब न्यूनतम दो व तीन शिक्षक पदस्थ किए गए हैं। 287 सहायक शिक्षक, 147 माध्यमिक शिक्षक और 75 व्याख्याताओं को काउंसलिंग के माध्यम से ऐसी शालाओं में पदस्थ किया गया है, जहां शिक्षक की जरूरत थी। इससे पोड़ी उपरोड़ा, पाली, करतला, कटघोरा जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में वर्षों से शिक्षकविहीन रहे विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा। गणित, विज्ञान जैसे विषयों के विशेषज्ञों शिक्षक स्कूलों में उपलब्ध होंगे।

     इसी तरह शिक्षकों की पदस्थापना में असंतुलन के चलते राजनांदगांव और दुर्ग जिले के ग्रामीण स्कूलों के परीक्षा परिणामों में गिरावट आई है।

     राजनांदगांव के घोटिया स्कूल में 103 छात्रों पर मात्र 3 व्याख्याता हैं, वहीं दुर्ग के मुरमुदा, सिलितरा और बिरेझर जैसे स्कूलों में पर्याप्त संख्या में व्याख्याता न होने के कारण इन स्कूलों का परीक्षा परिणाम प्रभावित हो रहा है। इसके उलट शहरी स्कूलों में शिक्षक आवश्यकता से अधिक पदस्थ हैं। युक्तियुक्तकरण से अब इस असमानता को दूर किया जा रहा है।

     बस्तर संभाग के सात जिलों बस्तर, बीजापुर, कोंडागांव, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, कांकेर और सुकमा में कुल 1611 स्कूलों का युक्तियुक्तकरण किया जा रहा है। इससे शैक्षणिक संसाधनों का समुचित वितरण, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कंप्यूटर, खेल सामग्री जैसी सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। साथ ही, एक ही परिसर में संचालित शालाओं का एकीकरण कर प्रशासनिक खर्च में भी बचत होगी।

     कमोवेश यह स्थिति कोरिया जिले में मिली, जिसके कारण जिले में 81 सहायक शिक्षक, 33 शिक्षक व 7 व्याख्याताओं को ऐसी शालाओं में पदस्थ किया गया, जहां शिक्षकों की जरूरत रही है। अधिकारियों ने कहा कि जिलों में युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी ढंग से संचालित की जा रही है और अतिशेष शिक्षकों को काउंसलिंग के माध्यम से उनकी पसंद की शालाओं में पदस्थ किया जा रहा है। 

     सरगुजा जिले में भी युक्तियुक्तकरण के माध्यम से 283 सहायक शिक्षकों को उन शालाओं में भेजा गया है, जहां शिक्षकों की जरूरत थी।

     जांजगीर जिले में 18 प्रधान पाठक, 196 शिक्षक और 436 सहायक शिक्षकों की काउंसलिंग प्रक्रिया पारदर्शी व वरिष्ठता प्रणाली के आधार पर पूर्ण की गई। चयनित शिक्षकों को तत्काल पदस्थापना आदेश भी दे दिए गए हैं।      छत्तीसगढ़ में शिक्षक युक्तियुक्तकरण की यह नीति न केवल शैक्षणिक असमानताओं को दूर कर रही है, बल्कि प्रत्येक विद्यार्थी को समान, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने की दिशा में एक सशक्त और दूरदर्शी कदम है।